जब तुम चलती हो
तो कतई नहीं लगता
फ़ूलों की कोई डाली लचकी हो
न तुम्हारी आँखें हिरनी सी लगीं मुझे
और मैने फ़ूल भी झरते नहीं देखे
जब तुम हँसती हो
सुना नहीं मैने
कि अच्छा गाया ही हो तुमने कभी
या लिखा हो कोई गीत
तुम्हारी अदायें भी ऐसी कोई शोख नहीं
और तुम कुछ इस तरह दाखिल हो मेरी ज़िन्दगी में
कि कुछ अच्छा नहीं लगता तुम्हारे बिना
न फ़ूलों की डाल के लचकने सी किसी की चाल
न कोई हिरनी सी आँखें
न किसी की हँसी से झरते फ़ूल
न किसी का गाना
न कवितायें
और न ही किसी की शोख अदायें
(२ मई; हमारी वैवाहिक वर्षगाँठ और उसके जन्म दिन पर)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment