सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
तबसे शहर के लोग हमसे खुश नहीं रहते |
जो मेरी एक झलक पाने को भी तरसते थे |
आंहें भरते थे कसम खाते थे और तडपते थे |
दीवाना समझते हैं हँसते है और चले जाते हैं |
अब वे लोग मेरे पास दो घड़ी भी नहीं रहते |
सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
पहले पहल तो मेरा दिल जार जार रोता था |
सबकी बेदिली से दामन तार तार होता था |
जी में हो तो रो लेते हैं कभी चुप बैठ रहते हैं |
अपने इस हाल पर अब हम कुछ नहीं कहते |
सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
ज़रा ठेस पे दिल कांच का टूट जाये तो क्या |
न अगर रोये तो कोई आखिर करे भी क्या |
लोगों को ये गुमान है कि वे सख्त दिल हैं |
आँसुओं को अफ़सोस है कि बह नहीं सकते |
सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
किसी को कोई भला किस तरह भुलाता है |
अपने ही दिल से आखिर कैसे दूर जाता है |
ये तो जिस पे गुज़रती है वही समझ पाता है |
हम अगर चाहें भी तो खुद कह नहीं सकते |
सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
Wednesday, 5 October 2011
मेरे बगैर
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बढ़िया पंक्तियाँ ,बढ़िया भाव
ReplyDeleteदीपावाली की हार्दिक शुभकामनाये