Monday 12 October, 2009

हम जो बन सके करते हैं
वो जो मन करे करते हैं

है रोशन किसी से जहाँ
ऒर कुछ यूँही जलते हैं

कुछ को तेरा दर नसीब
बाकी दर बदर भटकते हैं

मस्जिद मे जा बिगड़े हुये
मैखानों मे आ सुधरते हैं

क्यों जीते हैं खुदा जाने
जो न किसी पे मरते हैं

सुन ऎ दिल धीरे से चल
अभी वो आराम करते हैं

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