Tuesday, 13 October 2009

और नहीं

एक मुर्दा भविष्य
एक लचर वर्तमान
अभी ठॊर नहीं
राह किसी ओर नहीं
एक जमात मूढ़ों की
बिरादरी गूँगों की
किसी की खैर नहीं
पर ज़रा शोर नहीं
नफ़रत के बीज
दुश्मनी के पेड़
अशान्ति के फ़ल
शराफ़त का दॊर नहीं
ये शोषण लाचारी
गरीबी महामारी
बढती बेरोज़गारी
बस अब ऒर नहीं

3 comments:

  1. भाई आपका ब्लॉग आज पहली बार देखा बहुत अच्छा लगा . आप मेरे नाम की राशिः के है तो बहुत ख़ुशी हुई . खूब लिखे. दिल से धन्यवाद.

    महेन्द्र मिश्र
    जबलपुर

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  2. क्रांति की प्रष्ठभूमि ऐसे ही तैयार होती है ।

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