Tuesday 12 April, 2011

जोर से रोओ तो सही

क्या करते हो जब
तुम्हारे हिस्से का
तीन रुपये किलो वाला अनाज
अफसरों की हवस का बन जाता है आहुति
या दुत्कार कर भगा दिए जाते हो उन स्कूलों से
जहाँ तुम्हारे बच्चे की पढ़ाई का बंदोबस्त होना चाहिए
या उन बड़े अस्पतालों के बाहर ही
दम तोड़ देते हैं तुम्हारे बूढ़े माँ बाप और गर्भवती स्त्रियाँ
कभी भी हड़प लिए जाते हैं तुम्हारे जमीन के टुकड़े
नज़रअंदाज कर दिए जाते हैं तुम्हारे जुड़े हुए हाथ
और उनमे दबी अर्जियाँ
बताओ क्या करते हो तुम
मेरी मानो तो
लगा दो आग उन भवनों में
गिरा दो सब ओहदे ऊँचे
नेस्तनाबूत कर दो ये ताज ओ तख़्त
और गर न बन पड़े ये सब
तो रोओ जोर जोर से
बहाओ सैलाब आँसुओं के
चीखो चिल्लाओ गुहार मचा दो
पटक कर सर अपना
लहूलुहान कर दो देहरियां उनकी
यूँ बैठ कोने में सिसक कर
ज़रा ज़रा रोज मर मर के
बदनाम तो न करो
जिंदगी को

No comments:

Post a Comment