Friday, 15 July 2011

अधर्म युद्ध

अमन के साथ लहू को बहा ले गई बारिश
बेवा का मुस्तकबिल आंसुओं में बह गया
किसी के बुढापे का सहारा टूटा चटक कर 
किसी के ख़्वाबों का खण्डहर ढह गया 
जुगनू फूल तितलियाँ थीं दुनिया उसकी 
बच्चे की ज़िंदगी में भला क्या रह गया
सफ़ेदपोशों को सियासत का मुद्दा मिला
तमाम मासूमों की ज़िंदगी से रंग बह गया 
फिर गुमराह कर दिए गए कुछ नौज़वान 
फिर ज़माना हैवानियत पे हैरान रह गया
कैसा वक्त है कि किताबें खंजर बन गईं हैं 
बजाये ज्ञान गंगा लहू का दरिया बह गया
इंसानियत ने अपना ही खून कर डाला
ये वार भी खुदा खुद अपने पे सह गया

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