अमन के साथ लहू को बहा ले गई बारिश |
बेवा का मुस्तकबिल आंसुओं में बह गया |
किसी के बुढापे का सहारा टूटा चटक कर |
किसी के ख़्वाबों का खण्डहर ढह गया |
जुगनू फूल तितलियाँ थीं दुनिया उसकी |
बच्चे की ज़िंदगी में भला क्या रह गया |
सफ़ेदपोशों को सियासत का मुद्दा मिला |
तमाम मासूमों की ज़िंदगी से रंग बह गया |
फिर गुमराह कर दिए गए कुछ नौज़वान |
फिर ज़माना हैवानियत पे हैरान रह गया |
कैसा वक्त है कि किताबें खंजर बन गईं हैं |
बजाये ज्ञान गंगा लहू का दरिया बह गया |
इंसानियत ने अपना ही खून कर डाला |
ये वार भी खुदा खुद अपने पे सह गया |
Friday, 15 July 2011
अधर्म युद्ध
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