Wednesday, 21 December 2011

सभा में बैठने की अयोग्यता

देखो अभी वो जो दफनाया गया है 
या फ़िर वो जिसे जलाया गया है 
और वे भी जो विसर्जित हुये हैं बहते पानी में 
उन सबका सामाजिक अंतिम संस्कार भले ही किया गया हो अभी 
भले ही चलते फिरते उठते बैठते सांस लेते रहें हों अब तक वे सभी 
मौत लेकिन उन सभी की 
घटित हो गई होगी बहुत पहले 
या शायद पैदा ही वे हुये होंगे मुर्दा 
क्योंकि किया तो उनने कुछ भी नहीं कभी 
जब चुन के चुन के गर्भों को बनाया गया 
अजन्मी कन्यायों का कब्रिस्तान 
अटके नहीं कभी निवाले उनके हलक में 
घूरों पे जब बच्चे इंसानों के खंगालते ढूँढते रहे खाना 
सूअरों और कुत्तों के साथ 
कभी देखा तो गया नहीं उनका खून गर्माते 
ठन्डे हो रहे मासूम बच्चे नकली इन्जेक्सनो से जब 
रौंद दी गई आबरू जब किशोरियों की किसी बड़ी कुर्सी तले 
एक ज़रा सी आह तक तो सुनी गई नहीं उनके मुँह से 
हमेशा के लिए चुप करा दिया गया सुकरातों को जब कभी 
या जड़ गिए गए ताले कलमों पर 
राते गए गहरे सन्नाटे में कभी जीभर रोये तक न वे
कुछ न कर पाने की लाचारी पर 
 
जीना तो इस तरह होता नहीं इंसानों का 
अगर ऐसा ही परिभाषित है जीवन किताबों में 
तो लगा दो आग उनमे और अनपढ़ बने रहो 
अगर ये विकास की कीमत है और मजबूरी सभ्यता की 
तो रहने दो विकास और असभ्य बने रहो 

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