घटनाओं के झुरमुट से निकलकर |
कुटिलताओं के झमेले में |
कभी आशाओं के मेले में |
कल्पनाओं की रजाई में घुसकर |
आदमी और आदमी का मन चंचल |
गठरी उहापोहों की लादे |
गिरता लंगड़ाता कभी दौड़ता सरपट |
मंझा डालता सातों आसमान |
सर घुटनों पे रख कोने कांतर में जाता डूब |
पहाड़ और सागर कभी एक कर देता |
किसी एक से जाता हार बार बार |
होशियारी और मूर्खता दोनों उसकी अपरम्पार |
सबसे बड़ा अजूबा सबसे बड़ा कमाल |
अजब दशा और गज़ब चाल |
कहीं धमक और कहीं मद्धिम मद्धिम पदचाप |
मंथर गति से चलता काल |
बिना आवाज सबको काटता रहता चुपचाप |
Saturday, 31 December 2011
गया और ये गया
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