रोशनी के पीछे का सच
जब कभी एक दिन
सो रहेगा कफ़न ढांक
भाँय भाँय करेगी दुपहर
शोर गहराई रातों का
बैशाखियों को सीढ़ी बना
नरकों का आसमान छू रहा होगा
बारिश में टपककर सरोकार
स्वार्थों के गंदे नालों से बहकर
घुलमिल जायेंगे वैमनस्य के पाताल में
उसमें से उठते सियासतों के बवंडर
उखाड़ फेंकेंगे मनुष्यता की सड़ती गलती कमजोर जड़ें
खीसें निपोरे मुंह चिढ़ाते बन्दर
हंस हंस के पूछेंगे
कहो कैसी रही गुरु
हमसे आगे की तुम्हारी यात्रा
जब कभी एक दिन
सो रहेगा कफ़न ढांक
भाँय भाँय करेगी दुपहर
शोर गहराई रातों का
बैशाखियों को सीढ़ी बना
नरकों का आसमान छू रहा होगा
बारिश में टपककर सरोकार
स्वार्थों के गंदे नालों से बहकर
घुलमिल जायेंगे वैमनस्य के पाताल में
उसमें से उठते सियासतों के बवंडर
उखाड़ फेंकेंगे मनुष्यता की सड़ती गलती कमजोर जड़ें
खीसें निपोरे मुंह चिढ़ाते बन्दर
हंस हंस के पूछेंगे
कहो कैसी रही गुरु
हमसे आगे की तुम्हारी यात्रा
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