Friday, 10 February 2012

तरक्की

रोशनी के पीछे का सच

जब कभी एक दिन

सो रहेगा कफ़न ढांक

भाँय भाँय करेगी दुपहर

शोर गहराई रातों का

बैशाखियों को सीढ़ी बना

नरकों का आसमान छू रहा होगा

बारिश में टपककर सरोकार

स्वार्थों के गंदे नालों से बहकर

घुलमिल जायेंगे वैमनस्य के पाताल में

उसमें से उठते सियासतों के बवंडर

उखाड़ फेंकेंगे मनुष्यता की सड़ती गलती कमजोर जड़ें

खीसें निपोरे मुंह चिढ़ाते बन्दर

हंस हंस के पूछेंगे

कहो कैसी रही गुरु

हमसे आगे की तुम्हारी यात्रा

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