Tuesday, 21 February 2012

मेरी मानो तो

बांह से पकड़ कर सूरज को

इधर दांये तरफ बैठा दिया जाएगा

तारे पोटली बाँध काली रात को

हमेशा के लिए ले जायेंगे यहाँ से

इनको जब जितना चाहिए

बादल बस उतना ही बरसेंगे

नदियाँ एक इशारे पर धीमी तेज हुआ करेंगी

गिरते नाले उन्हें गंदा नहीं कर सकेंगें

और ना ही चिमनियों और गाड़ियों का काला धुआँ

विषाक्त करेगा हवाओं को

ये सब कुछ बस सिर्फ हमारे चाहने भर से घटित हो जाया करेगा

हम इंसानों के चाहने भर से

क्योंकि हम महान हैं

क्योंकि हम जैविक क्रम में सर्वोच्चतर हैं

और ऐसा सिर्फ कहते भी हमीं हैं

किसी मेढक या चमेली या हिमालय से ऐसा कहते सुना नहीं गया

चलो माना ये सब बातें विवादास्पद हो सकतीं हैं

लेकिन ये सत्य

कि भव्य गुम्बदों और आलीशान इमारतों में

सजे हैं न्यायालय और बढती ही जाती है उनकी आवश्यकता

चमकती संगीनों और रंगीन कलगियों की बारातें

मनुष्यता के विध्वंश का साज और सामान

कितने फक्र से प्रदर्शित करते हैं राष्ट्राध्यक्ष

और तो और

लोग बिना टकराए सड़क पर चल सकें ठीक से

इसके खातिर भी सिपाही खड़े किये जाते हैं

और फिर भी नहीं चल पाते अभी हम ठीक से

किस कदर तो अंधे हैं अभी हम

और इस कदर गूंगे और बहरे भी

वरना कौन इतनी मासूम चीखों को सुन के भी

बेपरवाह बना रह सकता है

इतना कुचले जाने पर भी एक चीख तक नहीं

मेरी मानो तो छोड़ो मंगल और बृहस्पति की यात्राएं

यहाँ नोयडा से दिल्ली तक की यात्रा सुरक्षित करने का इन्तेजाम करो

स्थगित कर दो अभी जेनेटिक इंजीनियरिंग के प्रयोग

ज़रा इन्तेजाम करो कि हैजा और मलेरिया से तो न मरे कम कम से कोई

अभी रहने दो बड़े बड़े ख़्वाब

त्यागो मोह फिलहाल ऊँची अट्टालिकाओं का

सब मिल कर अभी तक जितना जाना है कमाया है बनाया है

उससे एक स्वस्थ मनुष्यता तो बना लो पहले

तन से मन से आत्मा से

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