Monday, 16 August 2010

१५ अगस्त २०१०

हो चुके बरसों आज़ादी मिले हुये
और अब तक आज़ाद हैं हम
आज़ाद हैं हम
भूखे रहने को
बाढ़ मे तबाह होने को
बीमारियों मे तड़पने को
अनाज सड़ता देखने को
सूखे की बरबादी झेलने को
मार डालने को खुद को आज़ाद हैं हम
आज़ाद हैं हम
चोरी करने को
लूटने खसोटने को
बलात्कार करने को
मार डालने को निरीहों को
दंगे फ़साद करने करवाने को
सरेआम अपराध करने को आज़ाद हैं हम
हवाओं मे घोलने को जहर आज़ाद हैं हम
सांस लेने को उसी हवा मे आज़ाद हैं हम
नाज़ायज शराब बेचने को आज़ाद हैं हम
उसको पी के मर जाने को आज़ाद हैं हम
वोट देके अपना नेता बनाने को आज़ाद हैं हम
नोट देके उनसे सब करवाने को आज़ाद हैं हम
अमीरों के गुलाम बने रहने को आज़ाद हैं हम
उन्ही के रहमो करम पे जीने को आज़ाद हैं हम
घुट घुट के जीने को
रोज़ रोज़ मरने को
खून के आंसू पीने को
जंजीर मे जकड़े रहने को
नालियों मे सड़ते रहने को
हर जोर ज़ुल्म को सहने को
थे आज़ाद पहले भी
और अब तक आज़ाद हैं हम
हो चुके बरसों आज़ादी मिले हुये

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