Monday, 2 August 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स २०१०

खेल होने को हैं
खेल हो रहा है तैयारियों के नाम पर
खेल बन गई है निरीह जनता
खेल हो रहा है हमारी
खून पसीने की कमाई पर
खेल ही खेल मे और भर लेंगे कुछ लोग
पहले से ही भरी तिजोरियाँ
मीडिया ने भी खूब मचा रखा है खेल
बारिश तुली हुई है
खेल खराब करने को
और कुछ गाँधीवादियों की प्रार्थनायें भी
क्या गजब का चल रहा है खेल
एक भी टीम में दिखता नहीं मेल
कुछ हैं जो बिना खेले
और पहले से ही लगें हैं बटोरने में ईनाम
जो नहीं पा रहें हैं कुछ
लगें हैं बिगाड़ने में खेल
इतनी भी क्या आफ़त है भाई
खेल ही तो हैं आखिर

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