वाद के बिना
नहीं देखा हमने विवाद कभी
रात के बिना
नहीं देखा हमने प्रभात कभी
ये तो संगी साथी हैं वस्तुत:
विरोधी हम समझते हैं
सब भ्रम है दृष्टि का हमारी
साथ चलते हैं राग और द्वेष
साथ रहते हैं घृणा और प्रेम
अलग है नहीं प्रकाश से अंधेरा
भूख से तृप्ति
एक हैं स्वर्ग नर्क
सुख दुख एक हैं
संयुक्त है मृत्यु जीवन से
मन करता है चुनाव
और होने नहीं देता प्रतिष्ठित
सत् चित् आनन्द में
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