जब कभी काव्य जगत में | |
चर्चा होती है किसी भवन की | |
महिमामंडित किया जाता है नींव की ईंट को | |
महान बलिदानी ईंट | |
मजबूत गुमनाम चुपचाप | |
पूरे भवन का बोझ उठाये | |
ठीक है | |
लेकिन नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता | |
उन इंटो को भी | |
जो बनाती हैं | |
भवन की शोभा कंगूरों को | |
क्योंकि उन सुसज्जित कंगूरों के बगैर | |
याद करने का कोई भी ज़रिया नहीं बनता | |
नींव की ईंटों को
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Thursday, 15 September 2011
ईंटें कंगूरों की
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