बहुत दिनों से नहीं मिला था मौका इनको चुराने को |
और सामने गली के उस तरफ वाले |
खूब हो रहे थे मोटे खा खा के चोरी का माल |
इनमे कुछ थे नए नए लौंडे |
खाते जाते थे तर माल दिखा दिखा के |
और मुंह भी चिढावें साथ साथ |
खूब करें हंसी ठट्ठा |
आखिर लौंडे जो ठहरे |
बानर बालक एक समाना.... |
समझाया भी होगा बड़े बुजुर्गों ने |
भईया छुपा के खाओ |
न माने तो न माने |
बहुत चिढ गए इस तरफ वाले |
तो मचा दिए हल्ला एक दिन |
इकठ्ठा हो गए सब जनता कालोनी वाले |
लगे चीखने जोश में |
अरे ये देखो हमारे फ्रिज की आइसक्रीम..... |
इसको देखो ससुरा हमारे चौके से ले आया है आलू..... |
हमारी ठिलिया के केले लगते हैं ये तो...... |
देख इस बंदरिया को |
पहने है पेटीकोट चुरा के हमारे आँगन से........ |
साइकिल की घंटी चुरा के खेल रहे हैं लौंडे...... |
वैसे तो दुमदार ठहरे कालोनी वाले |
लेकिन अबकी आ गया दम साथ में सबके |
उठाके डंडे जो दौड़े |
तो चुरवे सब लगे गुहार मचाने उस तरफ वाले |
कहें इधर वालों से कि भईया |
आओ हम सब चुरकट मोहल्ले के लोग मिल जाएँ |
और बजा दे बैंड जनता कालोनी का |
लेकिन मुकर गए सब इस तरफ वाले चुरवे |
भरे बैठे थे खूब |
और फ़िर जो घमासान मचा |
सो देख ही रहें हैं आप लोग सब |
Saturday, 20 August 2011
आज की ताज़ा खबर
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