गीली गीली सी महकती रात |
लुकते छिपते दोना भर सितारे |
मटरगस्ती करते आवारा बादल |
रुनझुन बूँदों की स्वर लहरी |
पत्तों को छेड़ती सावनी बयार |
देर तक मासूम पूनम का चाँद |
कल रात जब वहाँ खेल रहा था |
यहाँ इस तरफ इसी दुनिया में |
भूख से हारतीं उम्मीदों और |
सपनों को रौंदते यथार्थ में |
जालसाजियों से पलंग सजाकर |
तरक्की की सीता के साथ |
सुहागरात के सपने देखता था |
तंत्र और व्यवस्था का रावण |
कोई पूछता था हमसे कि |
तुम्हारी आँख में आंसू और |
होठों पर मुस्कराहट एक साथ |
तभी सामने सड़क पर नारे |
और भीड़ की उत्तेजना पर |
जोर से आ गई हंसी और |
एक सवाल उठा जेहन में |
ऐसा ही तो होता रहा होगा |
पहले भी ग़ालिब के समय |
जब भीतर से निकलता था |
होता है शबोरोज़ तमाशा ......... |
Monday, 22 August 2011
दुनिया मेरे आगे
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