मुझे बताया गया है कि |
एक आदमी हूँ मैं |
और ब्राह्मण हिन्दू |
तमाम और उप विभाजन |
भाई पिता बेटा मित्र सह कर्मचारी |
और ये भी कि |
मैं हूँ चतुर बेईमान शरीफ क्रोधी |
अनगिनत लकीरों से भेदा गया है मुझे |
असंख्य टुकड़े समेटे |
अपने जैसे असंख्य टुकड़े समेटे |
अन्य असंख्य लोगों से मिलना |
उफ़ |
मै कभी अपना ये वाला टुकड़ा आगे कर देता हूँ |
वे अपना वो वाला |
कहीं कभी और |
मेरा दूसरा कोई टुकड़ा |
उनके किसी और ही टुकड़े से मेल खाता है |
कभी नहीं भी मिल पाता |
मै या फिर वो |
या तो पेश नहीं कर पाते उचित टुकड़े उस वक्त |
या चाहते नहीं किसी वजह से |
अनगिनत लोग अनगिनत टुकड़े |
और अनगिनत संयोग |
उचित समय उचित स्थान पर |
उचित टुकड़ा खोजना निकालना पेश करना |
टुकड़ों के टुकड़ों से इस मिलने को |
कहा जाता है सभ्यता |
बहुत पेचीदा खेल है ये |
ज़रा चूके और गए |
और हाँ |
सत्य इस खेल में |
कहीं नहीं आता बीच में |
Monday, 3 September 2012
सभ्यता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment