Tuesday, 11 September 2012

थोड़ा कोयला देना सरकार

कुछ इंसान अभी अभी निकले हैं 
पन्द्रह दिन तक पानी में रह के 
जड़ा गए होंगे बेचारे 
हड्डियाँ ज़रा सेंक लें 
तनिक आग जलाई जाए 
आपसे बस इतनी है दरकार 
थोड़ा कोयला देना सरकार 
उधर नीचे कुछ मदरासी बंधु 
रूस और जापान के हादसों से डरे 
अपनी सेहत और जान की चिंता में 
खा रहें गोली 
डाक्टर वाली नहीं 
पुलिस वाली 
अरे बिजली ही तो देनी है ना उनको 
तो कुछ और करिये उपचार 
थोड़ा कोयला देना सरकार 
एक कनपुरिया सज्जन 
दिसा मैदान को निकले होंगे 
अँधेरे में दिखाई नहीं दिया होगा 
ऐसी जगह फारिग हो गए 
कि बुरा मान गए साहब लोग 
हालांकि जगह तो ठीक ही चुनी थी 
सो बंद हैं ससुराल में 
लिखने का शौक है सुना उनको 
अब कागज़ कलम कहाँ वहाँ 
रंगने पोतने को है दीवार 
थोड़ा कोयला देना सरकार 

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