Friday 7 September, 2012

खूबसूरत अँधेरे

जाते जाते सांझ ने 
आसमान के ऊपर से खींच दी चादर 
कुछ गहरे बादल 
व्यस्त हो गए तारों से खेलने में 
कभी कोई टूटता सितारा 
खींच चाँदी की लकीर गुम हो जाता 
बेहद कमजोर हँसुली सा खूबसूरत चाँद  
नीचे इधर उधर टिमटिमाती रोशनियाँ 
घने अँधेरों में उकेरा गया एक  
बेहद हसीन मंजर 
बस ज़रा सी देर में 
सुबह फाड़ डालेगी अँधेरे का ये कैनवास 
और तमाम चिरागों के क़त्ल का लहू 
अपने दामन में समेटे 
बेशर्मों की तरह 
मंडराता चमकता फिरेगा 
बदमाश सूरज 

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