Tuesday, 15 December 2009

अप्प दीपो भव

न कोई दुख देने को है
और न ही कोई सुख देने को
तुम जो चाहो
स्वयं चुन लो
सब पड़ा है
यहाँ सामने तुम्हारे
चुनाव सिर्फ़ तुम्हारा है
मगर चुनाव तुम जिस अक्ल से करोगे
वो भी तुम्हारी ही है
यही विडम्बना है
मैने देखा है
तुम्हें काटें चुनते हुये
हमेशा से यहाँ
मैने देखा है कि तुम
चुनाव करते आये हो
गहरी घाटियों का
तुमने चुने हैं अँधेरे सदा
और फ़िर मैने देखा है
तुम्हे रोते हुये जब
काँटे चुभते हैं
जब सड़ते हो गहराईयों में
जब टकराते हो पत्थरों से
प्रकाश के अभाव में
अचरज हुआ है ये सब देख के मुझे भी
सोचता रहा हूँ भला बात क्या है
मैने जाना है कि
उचित चुनाव के लिये
जरूरत होती है
स्वयं के विवेक की
अपना दिया जला लो
जैसा भगवान बुद्ध ने कहा
अप्प दीपो भव

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