Friday, 25 December 2009

प्रभु पुत्र को, शर्म से!

हे ईश्वर पुत्र
मेरे भाई
कभी कभी लगता है
तुमने व्यर्थ जान गँवाई
प्रेम की खातिर
और हमारे प्रेम में
तुमने सलीब पर टाँग दी
अपनी गर्दन
हम निरे लंपट
अपनी गर्दनो में
सलीब लटकाये घूमते हैं
पूरी दुनिया में फ़ैलाने को
तुम्हारा प्रेम संदेश
जबरन कितनी बर्बरता से
निरीहों की
गर्दने उतारते हैं
दो हज़ार साल से
हम यही करते आये हैं
और आगे भी यही करेंगे
देखकर ऐसी क्रूरता
कभी न कभी जरूर
तुम और तुम्हारे पिता
शर्म से डूब मरेंगे

No comments:

Post a Comment