उमस गर्मी और अन्धकार
फ़िर टूट जाना
पता नहीं
बीज के लिये ये क्या है
आशा या मजबूरी
फ़ल फ़ूल और छाया
साँस लेने को हवा
पता नहीं
हमारे लिये ये क्या है
अधिकार या पुरस्कार
जो भी हो
नियति है यही
मेरी समझ में
ये कोई गौरव नहीं है बीज का
बीज इसका दम्भ भी नहीं करता
चुपचाप मिट रहता है बेआवाज़
एक हम इन्सान
जो इसी प्रकृति का
हिस्सा हैं अदना सा
जो श्रेष्ठतर समझते हैं स्वयं को
और तमाम जीवों में
किसी को अगर
कचरा भी दें अपना
तो मचाते हैं कितना शोर
नहीं है हमारे दम्भ का
कोई ओर छोर
Sunday, 27 December 2009
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