Thursday 24 December, 2009

सिगरेट पीती हुई औरत

सिगरेट पीती हुई औरत
भाप से चलने वाले
इंजन की याद दिलाती है
एक बारगी लगता है कि
वो नेतृत्व कर रही है
चूल्हे का धुँआ भी
याद मे आता है
चिता का भी
जिसमें वो रोज़ जलती है
गीली लकड़ी की तरह
शायद वो देखना चाहती है
उस धुँये को जो अपने भीतर
कहीं महसूस करती होगी
मै चाहता हूँ कि
ठीक से देख ले वो
क्योंकि ठीक से देख लेना
समस्याओं को
उनके समाधान की दिशा में
सर्वाधिक आवश्यक कदम है
लेकिन चूँकि ये एक
कदम मात्र ही है
मै ये भी चाहता हूँ कि
वो सिर्फ़ देखती ही न रह जाये

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