उठो चलो
आग लगानी है
अपने ही खलिहानो मे
खून को पसीना किया हमने
जानता हूँ
मगर ज़रा सोचो
कि हमें तो मरना है भूखों ही
फ़िर क्यों ये पवित्र अन्न
उनका पेट भरे जो
कल जलायेंगें हमारे ही झोंपड़े
बनाने को आलीशान महल
मौत की ओर धकेलेंगे हमारी बेटियाँ
अपने विलास के लिये
बरबाद कर देगें हमारी नदियाँ सागर
अपने ऐशोआराम में
नहीं छोड़ेंगे हमारे लिये
साफ़ हवायें सुरक्षित वन
उठो चलो
जल्दी करो
देर हो चुकी है पहले ही
पालने बन रहें हैं कब्र
और कब तक करें सब्र
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment