Monday, 28 December 2009

अन्नदाताओं से

उठो चलो
आग लगानी है
अपने ही खलिहानो मे
खून को पसीना किया हमने
जानता हूँ
मगर ज़रा सोचो
कि हमें तो मरना है भूखों ही
फ़िर क्यों ये पवित्र अन्न
उनका पेट भरे जो
कल जलायेंगें हमारे ही झोंपड़े
बनाने को आलीशान महल
मौत की ओर धकेलेंगे हमारी बेटियाँ
अपने विलास के लिये
बरबाद कर देगें हमारी नदियाँ सागर
अपने ऐशोआराम में
नहीं छोड़ेंगे हमारे लिये
साफ़ हवायें सुरक्षित वन
उठो चलो
जल्दी करो
देर हो चुकी है पहले ही
पालने बन रहें हैं कब्र
और कब तक करें सब्र

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