Thursday, 11 March 2010

असंगति

एक अकड़ के आ रहा है
दूसरा मुँह छुपाये है
एक का गला फ़ूलों के हार के काबिल है
दूसरे का फ़न्दे के
आस्तीन पर दोनो के लहू है
इन्सान का

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