Monday, 5 July 2010

अद्वैत

आइने के इस तरफ़ का शख्स
आइने के उस तरफ़ के शख्स से
पूछता है हैरान होकर
तुम बदल जाते हो रोज़
तुम कभी एक से नहीं दिखते मुझे
और एक मै हूँ कि वही का वही
आखिर ये माजरा क्या है
अगर वो बोल सकता तो कहता
मै नहीं हूँ
जो बोल सकता है
वो कहता है कि
मैं ही हूँ
जो मौन हो गया
वो जानता है कि
तू ही है

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