चाक पर व्यस्त रहे
दिये बनाने मे
कभी कोल्हू मे
पेरने को तेल
और कभी लगे रहे
बाती बनाने में
हाथ मेरे
अच्छा किया जो चिरागों ने हवाओं से दोस्ती कर ली
उन्हे बचाने को
हम कहाँ से लाते खाली हाथ
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अनुभूति सत्य है, अभिव्यक्ति मिथ्या.
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