ज्यों की त्यों धर दी थी कबीर ने
और भी होते हैं कई
जो धर देते हैं ज्यों की त्यों
फ़र्क सिर्फ़ इतना है
कि वे ओढ़ते ही नहीं
बहुतों ने ओढ़ी भी
जाहिर था कि बहुत मैली थी उनकी
पाँव फ़ैलाने होते हैं कभी ज्यादा
तो चीथड़े हो जाती है कइयों की
खींचतान मे अक्सर
बड़े जतन की बात है
कबीर का जतन
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