चाँद धरती के लगा रहा है चक्कर
एक आकर्षण से बँधा
घूम रही है धरती
सूरज से बँधी
सूरज परिक्रमा में रत है
एक और महासूर्य के
सब कुछ इस पूरे ब्रह्माण्ड में
है किसी न किसी के आकर्षण में बँधा
और लगा रहा है उसके चक्कर अनवरत
खिंचाव
लगाव
प्रेम
चक्कर
तुम
तुम्हारा कालेज
रिक्शा
मेरी साइकिल
मैं
इस ब्रह्माण्ड से बाहर नहीं हैं
Thursday 11 February, 2010
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