मुहब्बत में कोई मंजिल कभी गवारा न हो
ये वो दरिया निकले जिसका किनारा न हो
अकेले आये थे अकेले चले भी जायेंगे मगर
इस जमीं पर तेरे बिन अपना गुजारा न हो
कभी तकरार भी होगी हममे और प्यार भी
न बचे आखिर शख्स कोई जो हमारा न हो
बेशक ज़िन्दगी गुज़रे यहाँ की रंगीनियों मे
भूल जायें तुझे एक पल को खुदारा न हो
नज़र का फ़ेर है बुरा जो कुछ दिखे यहाँ
नही कुछ भी जो खुद तुमने सँवारा न हो
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मुहब्बत में कोई मंजिल कभी गवारा न हो
ReplyDeleteये वो दरिया निकले जिसका किनारा न हो
अकेले आये थे अकेले चले भी जायेंगे मगर
इस जमीं पर तेरे बिन अपना गुजारा न हो
bahut hi sunder panktiyan....