Friday, 6 November 2009

छुप छुप के

बैलगाड़ियों के समय
प्यार छुपा करता था
उस कच्ची दीवार की ओट में
जहाँ बँधते थे बैल
तलैया किनारे
या फ़िर दुपहरी मे
बम्बे के पीछे
अमराई में
या फ़िर साँझ होते
बाहर नीम के साथ वाली
भुसहरी मे
और कभी
मेले ठेले की रेलमपेली मे
चूड़ियों की दुकान पे
बैलगाड़ियों पे चलके
पहुँचे जहाजों तक
छुपने के ठिकाने
आधुनिक हो गये
मगर
प्यार अब भी छुपा करता है

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