Thursday, 5 November 2009

आखिरी उम्मीद

मेरा चैन खो गया था
अपनी जेबों मे तलाशा
अल्मारियों मे देखा
बिस्तर के नीचे
कमरों के कोनो मे
गलियारों मे
और फ़िर
रास्तों बाजारों
नदियों पहाड़ों
मन्दिरों मस्जिदों मे
सारा गाँव इकट्ठा
खूब शोर
एक पागल के चैन मे खलल पड़ा
चिल्लाकर बोला
अपने भीतर क्यों नही देखता है
मैने अनसुना कर दिया
लगा रहा खोज में
लोग चकित ऒर उत्सुक
कहने लगे कि देख भी लो
अपने भीतर एक बार
चिल्लाकर कहा मैने
नहीं कभी नहीं
वहीं तो है एक आखिरी उम्मीद
अगर वहाँ देखा मैने
और
न पाया तो !

No comments:

Post a Comment