Wednesday, 11 November 2009

शतरंज के खिलाड़ी

लोग देखते हैं अक्सर इन दिनो
दो इन्सानो के चीथड़े बिखरे हुये
एक वो जो आया था कमर पे बम बाँध
दूसरा खड़ा हो गया सामने बन्दूक तान
मुझे दिखतें हैं
दो शहीद प्यादे
और
दो नवाब बाज़ी बिछाये


कुत्ते

बरसों हो गये उन्हे
जनता का मांस नोचते
उसका लहू पीते
अब नहीं बचा होगा कुछ भी जनता मे
यकीनन
अब वे चूस रहे होंगे हड्डियां
और अपने ही मसूढों से रिसता लहू

1 comment:

  1. बहुत ही बढिया लगी आपकी रचना..........ऐसे ही लिखते रहे!

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