Monday, 16 November 2009

अधर्मान्धता

वो पढ़ता है एक किताब
और हम दूसरी
वो झुकता है एक जगह
और हम दूसरी
आओ चलो
मार डालें उसे


मानवता

मै मानवतावादी हूँ
देता प्रेम
जो मिली होती
मानवता कहीं
पर क्या करूँ
मिले सिर्फ़ मानव

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