Saturday, 7 November 2009

खानाबदोश

यादों का बिस्तर
खोल लेते हैं
बिछा देते हैं
तान के सो जाते हैं
और एक दिन
उठते हैं
समेटते हैं बिस्तर
और लेके
चल देते हैं
इसी बीच
जो कुछ भी
गुनगुना लेते हैं
वही जीवन की कविता है.

No comments:

Post a Comment