यादों का बिस्तर
खोल लेते हैं
बिछा देते हैं
तान के सो जाते हैं
और एक दिन
उठते हैं
समेटते हैं बिस्तर
और लेके
चल देते हैं
इसी बीच
जो कुछ भी
गुनगुना लेते हैं
वही जीवन की कविता है.
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अनुभूति सत्य है, अभिव्यक्ति मिथ्या.
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