Tuesday, 17 November 2009

समर्पण

पत्तों के पीछे से झरता
उगता सूरज
चाँद रात फ़ैली चाँदनी निशब्द
झील पर
दूर सागर में डोलती नावें
सुबह की हवाओं की खुशबुयें
एक नन्हे बच्चे की खिलखिलाहट बेवजह
अभी अभी रोपे दूर तक फ़ैले धान
पहाड़ी की ढलान पर फ़ैले
सीधे खड़े देवदार
गहरी रात के सन्नाटे
कुछ तेज तेज धड़कने
कुछ गहरी साँसे
जब भी
कभी भी
कहीं भी
जीवन ने दुलराया गुदगुदाया
वो अनुभुति
वो पल
वो जीवन
प्रेम को समर्पित कर आया

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