Tuesday, 10 November 2009

औरत

किसी ने गले मे जंजीर डाल दी
तो बंध गई खूँटे से मगन
कभी हथकड़ी लगा दी गई
तो कितनी लगन से
बेलती है रोटियाँ
कभी बेड़ियाँ डाल दी गईं
तो नाचने लगी झूम के
वाह रे तेरा गहनो का शौक!


आदमी

नोट से रोटी कमाते हैं
कुछ लोग उसे खाते हैं
पर वे भूखे रह जाते हैं
क्योंकि
कुछ लोग नोट खाते हैं
वे हमारे वोट खाते हैं
और
सब कुछ नोच खाते हैं
वाह रे भूख!

3 comments:

  1. महेन्द्र जी,

    गहनों के सन्दर्भ से परिभाषित औरत और नोटों के मायाचक्र में बिंधा हुआ आदमी बहुत ही करीबी लगे।

    बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।

    आपका कवितायन पर आने का शुक्रिया।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  2. बहुत ही सुन्दर रचनाओ के लिये आभार

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