हर दिन जैसा ही
ये भी वही दिन
और एक बरस निकल गया
और करीब और करीब
मौत के कदमो की आहट
साँसो के परदे में चली आती चुपचाप
इच्छायें आशंकाये
न खत्म हों तो न खत्म हों
और फ़िर तुम्हारी मंगलकामनायें
ये चाहना कि सब शुभ हो
फ़िर याद दिलाने को
कि नहीं है शुभ सब कुछ.
हाँ लेकिन ये भी याद दिलाने को
कि मै अकेला नहीं
इस कतार में
तुम भी हो
और भी हैं
सभी हैं
तो फ़िर
ये खुशी की बात है
या और दुख की.
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पता नही किसका शेर है लेकिन यह मुझे जन्म दिन पर याद आता है .." मौत से उधार लेकर एक उम्र गुजारते है हम / वर्षगाँठ की किश्तो मे यह कर्ज़ उतारते है हम " बधाई हो ।
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