अभी दिन मे इस तरफ़ आधी धरती पर
रात मे उस तरफ़ बाकी आधी
सर्दियों में ज़रा इधर झुककर
गर्मियों मे ज़रा उधर
सुबह से शाम तक मंझाता
कोने कांतर मे झांक झांक
घुस घुस के कन्दराओं में
यहां वहां ऊपर नीचे मँडराता
कभी तेज रोशनी में
कभी बादलों के पीछे से तांक झांक करते
जाने क्या खोजता रहता है रोज रोज
धरती का वो पागल प्रेमी
खाली चक्कर लगा लगा के
सिर्फ देखते रहना भर ही
तुम्हारी भी नियति क्या
मेरे जैसे ही है सूर्यदेव महाराज
रात मे उस तरफ़ बाकी आधी
सर्दियों में ज़रा इधर झुककर
गर्मियों मे ज़रा उधर
सुबह से शाम तक मंझाता
कोने कांतर मे झांक झांक
घुस घुस के कन्दराओं में
यहां वहां ऊपर नीचे मँडराता
कभी तेज रोशनी में
कभी बादलों के पीछे से तांक झांक करते
जाने क्या खोजता रहता है रोज रोज
धरती का वो पागल प्रेमी
खाली चक्कर लगा लगा के
सिर्फ देखते रहना भर ही
तुम्हारी भी नियति क्या
मेरे जैसे ही है सूर्यदेव महाराज
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