Thursday 19 July, 2012

देव कुदेव

गली के बहुत भीतर

एक संकरे आँगन के पीछे वाले

कमरे के जर्जर बिस्तर तक

ठण्ड में सिकुड़ती रहती हैं बूढी हड्डियां

सड़ जाती हैं सब्जियाँ गोदाम के सीलन में

झुलस जाता है मजदूर दिन भर खेत में

सूरज को दिखाई नहीं देता

या वो देखते नहीं

1 comment:

  1. आह!!!

    मार्मिक प्रस्तुति...

    अनु

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