पूरब को भागती हुई नदी
पश्चिम की ओर जाती नदी को देखकर
हैरान है
पक्का भरोसा है उसे कि
दूसरी नदी भटक गई है रास्ता
गलत है दिशा तो
कैसे पहुँच पायेगी मंजिल को
दुखी होती है
चिन्तन करती है
कारण समझने की करती है कोशिश
नतीजे निकालती है
किसी ने बरगला दिया होगा
हो सकता है कोई छुद्र स्वार्थ हो
बुजुर्गों ने सिखाया न हो सन्मार्ग पर चलना
मूर्ख हो न जान पाई हो सही राह
और अगर दूसरी नदी भी
पहली के बारे में
कुछ ऐसा ही सोचती हो
तो क्या आश्चर्य
सभी नदियाँ सोचती हैं ऐसा ही
किसी भी एक नदी की दिशा
ठीक ठीक किसी और जैसी नहीं होती
लेकिन सभी
बिना एक भी अपवाद के
पहुँच ही जाती हैं सागर तक
(2)
हम सब नदियाँ
छोटी बड़ी धीरे तेज छिछली गहरी
पा लेती हैं अपनी मंजिल
महासागर इस विराट का
दिशा दशा एवं अन्य सब विशेषण
सीमित संकुचित और अकिंचन हैं
हमारा जीवन और जीवन दर्शन भी
असीम विस्तृत और भव्य है
अस्तित्व !
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