Sunday, 31 January 2010

ताज

रोती रही रात भर
ताज से लिपट के
बहती हुई गुम हो गई
घने कोहरे मे
पंखुडियों पे जम के बैठ रही
उसकी सिसकियां
गूंजती रहीं सदियों महलों मे
आसुँओ को बिखेर एक चितेरे ने
सजा डाले बगीचे
डोंगी मे बैठ यमुना पर
चाँदनी पीने की आस लिये
ज़िन्दगी पा लेने की
ज़िन्दगी भर की नाकाम कोशिश
एक निहायत खूबसूरत इमारत
सदियों सदियों के लिये
मोहब्बत करने वालों के लिये रश्क
न कर पाने वालों के लिये रश्क
रोती रहती है रात भर
आज भी एक रूह
लिपट के ताज से
सूकून नहीं है
जाने क्यों

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