Friday, 1 January 2010

प्रार्थना

मै बाती सा जलकर भी
पथ दीप्त प्रभु कर पाऊँ
खींच उषा का आँचल मैं
नभ पर दिनकर ला पाऊँ

सुख आये या दुख आये
सम हो जीवन का स्वर
हो छाँव या कि धूप हो
बैठूँ नहीं थक हार कर

टूटती हो तार वीणा की
मगर न कभी लय टूटे
छूटते हों राग जीवन के
मगर न कभी आशा छूटे

घृणा द्वेष से दूर रहूँ मै
गीत प्रेम के गा पाऊँ
कुचला जाता भी यदि हूँ
गन्ध पुष्प सी बिखराऊँ

मै बाती सा जलकर भी
पथ दीप्त प्रभु कर पाऊँ
खींच उषा का आँचल मैं
नभ पर दिनकर ला पाऊँ


नव वर्ष पर असीम मंगल कामनाएं !

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