Tuesday, 12 January 2010

अर्थ काम धर्म मोक्ष

किताबों और इम्तिहानों के
जंगल में उलझकर जब पहली बार
जीवन में कष्ट समझ मे आया
ये बताया गया कि
इसके पार परम सुख है
लेकिन उसके पार जब
जीविकोपार्जन और
अन्य युवा सुलभ आकांक्षाओं
की उहापोह के झमेलों में
फ़िर जान अटकी सी जान पड़ी
ये बताया गया कि
इसके पार परम सुख है
फ़िर एक बार झटका लगा
जब जीवन में अर्थ सिर्फ़ अर्थोपार्जन में दिखा
और काम हमेशा काम में रोड़ा रहा
अब सिवाय ये स्वयं मान लेने के
कोई चारा नहीं था कि
इसके पार परम सुख है
अर्थ का
जीवन अनर्थ कर देना
समझ नहीं आया कभी
ये भी न समझ आया कि
काम है एक दुश्पूर माँग
एक बिना पेंदे का बरतन
डाले रहो हमेशा जिसमे
खैर
परम सुख अब जब कि
जान पड़ता है केवल मृग मरीचिका
एक नया झमेला शुरु हुआ
धर्म का
और उसके नाम पर चल रहे
सब तरह के अधर्म का
अब लालच दिया जा रहा है
मोक्ष का
अब जब कि पक्का जान पड़ता है
कि परम सुख
एक परम कुटिल जालसाजी है
हम भी हो गये शिकार

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